Friday 15 August 2014

pyaas

प्यास 
अम्बर प्यासा धरती प्यासी,
प्यासा फिरता जग का हर कण,
तुम्ही बताओ इस धरती पर,
प्यास बुझी है कभी किसी की?
सोने के अम्बार मिल गए,
चांदी की पर्वत मालाएँ ,
अंगणित हीरे मोती पाकर,
तुम्ही बताओ इस वैभव से,
भूख मिटी है कभी किसी की?
इस दौलत को खाया किसने,
पिया है किसने,
होड़ लगी धन संचय की फिर भी,
तुम्ही बताओ इस ठगनी से,
प्यास बुझी है कभी किसी की?
ओस कणो को व्यर्थ चाटता,
राही प्यास भड़क जायेगी,
हर पल प्यास, हर क्षण प्यासा,
तुम्ही बताओ शैतानी से,
प्यास बुझी है कभी किसी की?
मृग तृष्णा में दौड़ा फिरता,
तनिक तृप्ति भी हाथ ना आई,
व्यर्थ गवाया जीवन अपना,
तम्ही बताओ अति लिप्सा से,
प्यास बुझी है कभी किसी की?
बाहर नहीं है कुछ भी प्यारे,
अन्तः में ही प्रवह मान है,
आत्म तत्व का सुन्दर श्रोता,
बिना खोज के तुम्हे बताओ,
खोज मिटी है कभ किसी की?

-निमिषा 

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