Friday 15 August 2014

PUKAAR

पुकार 


कभी कभी ये क्षुब्ध मन कुछ यूं कहता है,
क्या है कोई जो इस नभ में छुपकर रहता है?
कहते है सब के है ऊपर भगवान कहीं,
तो बात आज करना चहु सुन लो मेरी,
जीवन से खुशियाँ लेकर, ई इंसानो को दुःख देकर,
अपनी रचना को सताओगे,
तो सुख तुम भी क्या पाओगे?
पूजें तुमको हम हर एक पल,
मानें तुमको हम हर एक क्षण,
फिर भी क्यों हो करते तुम,
जीवन से खुशियो का भक्षण,
जो यूं पत्थर बन जाओगे,
तो क्या पूजन करवाओगे?
धरती पर होते पाप हज़ार,
तुम क्यों चुप साधे  रहे निहार?
कष्ट बढ़ रहे मानवता हो रही है काम,
खुशिया काम है जीवन में कुछ ज्यादा है गम,
पर बहुत हुआ अब समय हुआ है बड़ा विकत,
आ जाओ अब धरती पे हो जाओ प्रकट,
कर दो विनाश तुम  हर दानव का,
लौटाओ फिर मानव के मन में मानवता,
जो अब दर्शन दे जाओगे,
सोती श्रद्धा को जगाओगे,
अपनी पहचान कराओगे,
तब ही ईश्वर केहलाओगे. 

-निमीशा 

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