Friday 15 August 2014

AARZOO



आरज़ू 

न ही देवी कहो मुझको ऐ दोस्तों,
मैं हूँ इंसान मुझे इंसान ही रहने दो,
पूजना चाहो तो पूज लो इस तरह,
जिंदगी अपनी शर्तो पे जी लेने दो,
माँ हूँ मैं, मैं हूँ बेटी, बेहेन भी मैं हूँ,
हूँ मैं पत्नी कभी मैं बानी प्रेमिका,
आंसू आँखों में मेरे कोई गम नहीं,
होठो पर मोती सी सज रही सिस्किया. 
साथ ना दे सको तो कोई गम नहीं,
पर मुझे मेरी राहो पे चलने तो दो,
पूजना चाहो तो पूज लो इस तरह,
जिंदगी अपनी शर्तो पे जी लेने दो,
कभी सीता बनाकर तजी मैं गयी,
आंसुओ में नहा द्रौपदी मैं हुई,
जब मैं मीरा बानी तो भी विष ही पिया,
और अहिल्या सी पत्थर बनायी गयी,
खुद से बेहतर मुझे न कहो गम नहीं,
पर मैं तुमसे नहीं काम ज़रा मान लो,
पूजना चाहो तो पूज लो इस तरह,
जिंदगी अपनी शर्तो पे जी लेने दो,
शक्ति मैं हूँ तो मुझको डराते हो क्यों?
लक्ष्मी हूँ मैं तो मुझको जलाते हो क्यों?
जो मैं जननी हूँ तो मुझसे तुम ये कहो,
मेरे जीवन की ज्योति बुझते हो क्यों?
हूँ मैं विद्या स्वयं फिर भी पढ़ ना सकु,
मुझको पर्दो में अब भी छुपाते हो क्यों?
मैं हूँ सीता अगर राम तुम भी तो हो,
मैं हूँ राधा तो घनश्याम तुम भी तो हो,
मर्यादाओ में रहो तुम सदा, द्रौपदी सी सुरक्षा किसी की करो,
मैं हूँ शक्ति तो शिव के हो अवतार तुम,
मैं हूँ लक्ष्मी तो विष्णु के समरूप हो,
हूँ मैं मरयम तो ईसा के पदचिन्हो पर,
चलने की एक कोशिश जरा तुम करो,
है ये राहें कठिन, है मुझे ये खबर,
मेरी कांटो भरी है जिंदगी की डगर,
मेरी राहो से कांटे न चुनो गम नहीं,
पर मुझे इनसे दामन बचाने तो दो,
पूजना चाहो तो पूज लो इस तरह,
जिंदगी अपनी शर्तो पे जी लेने दो,


-निमीशा 

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