Tuesday 9 July 2013

vapsi


वापसी

ये कोहरे की खुशबू,
कुछ अपनी सी लगती है,
ये फूलो की भीनी महक,
ये ओस की नन्ही बूँदे,
ये ठंडी सुबह की सिहरन,
लगता है लौट आया बचपन,
जिस आँगन में चलना सीखा,
उस आँगन की सोंधी खुशबू,
जिस मिटटी में खेल बढे हम,
उस मिटटी का अपनापन,
सावन में जिस पर झूले डाले,
वही नीम की ऊची डालें,
जहां बैठ कर देखे सपने,
वो छज्जे का एक छोर,
है कानो में गूंज रहा,
बचपन का वो अल्हड़ शोर,
आज फिर लौटी हूँ वहा,
जहा गुज़ारा था हर सावन,
इन आँखों ने आज है देखा,
फिर वही दृश्य मनभावन।
-nimiisha 

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