एहसास
जीवन का हर एक क्षण,
फूलो सा कोमल लगता है,
ये सारा संसार ही जैसे,
एक उपवन सा लगता है,
हम आज तलक बैठे रहे,
आँखे मूँद जिस एहसास से,
क्यों आज वही एहसास दिल में,
घर करता सा लगता है,
लक्षय साध कर अर्जुन सा,
जीवन में बढ़ते थे आगे,
फिर ये मन क्यों आज लक्ष्य से,
कुछ भटका सा लगता है,
मस्तिष्क को ढाल बनाकर,
बैठे थे एहसासों की अपने,
किन्तु विचारों पर भी अब,
शत्रु का घेरा सा लगता है,
बहुत लड़े पर विफल हुए,
एहसासों से विजय न पायी,
तर्क वितर्क के शस्त्र तजे जब,
जीत तभी दी दिखलाई,
वो आंखें जिनसे गहरी,
ना सागर ना नदियाँ पायी,
आवाज सुनी तो फिर मधुरम,
कोयल की तानें बिसराई,
मुस्कान है वो जिसके सम्मुख,
फीका हर एक सवेरा लगता है,
चहु और अब तो जैसे,
खुशियों का बसेरा लगता है।
-nimiisha
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