भोर
खिड़की से आज सुबह तो,
होठो पर मुस्कान खिली,
ओस से भीगी पत्तियों से देख,
रवि की किरने है आन मिली,
नर्म घास पर नन्ही बूंदे,
सागर में मोती हो जैसे,
चिडियों की चु -चु घोल रही,
कानो में अमृत हो ज़ेसे ,
उन गुलाब की पंखुड़ियों पर,
मंडराते भवरे की गुनगुन,
बोर आम के पदों पर,
और उसपर कोयल मधुरं स्वर ,
फूलों की खुशबू से महकी,
थी मेरे आँगन की क्यारी,
तितली के अनूठे रंगों से,
मिली थी उसको शोभा न्यारी,
हो प्रफ्फुल्लित नाच उठा था,
मेरा मन एक बालक सम,
भोर के रूप में मानो,
स्वर्ग उतर आया हो जैसे,
आज मेरे घर के आंगन।
-nimiisha