Tuesday 3 April 2012

ankahi


अनकही

कुछ तो कह दो आज,
 के मन मेरा कुछ उदास है.
न जाने क्या है ये,
 शायद कुछ पाने की आस है.
जेहें में जो आज उठी,
 कुछ तूफानी लहरें है.
खुलने लगे मुखौटे जिनके,
 कुछ जाने पहचाने चेहरे है.
रातो का ये सन्नाटा,
कैसी ये चुभन दे जाता है.
है प्रश्न कई होठो पर लेकिन,
 उत्तर नहीं मिल पाता है.
क्यों मन के सागर में ये,
 विचारों का सैलाब है आया.
क्यों हस्ता है मुझपर ही, 
दूर खड़ा हो मेरा साया.
क्यों कही किसी कोने में दुबकी,
 दरी सहमी सी मेरी मुस्कान.
क्यों आँखों से झलक रहा है, 
अश्रु का सागर अविराम.

-nimiisha 

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