Wednesday 8 January 2014

goonj

गूँज 


रोती  बिलखती परछाइयाँ है,
है चीख चहुँ ओर मची। 
देश प्रान्त के नाम पर,
धरती बटने से नहीं बची। 
धनवान अधिक धनवान हुए,
निर्धन घर रोटी नहीं बची। 
और देश चलाने वालो में भी,
सत्य भावना नहीं बची। 
सच्चाई से नाता तोड़,
इंसान झूट पर जीत है। 
निर्धन का खून चूस चूस ,
धनवान मजे से पीता  है। 
नेहरू गांधी से लोग देश में,
कम ही पाये जाते है,
अब तो सारे भ्रष्ट लोग ही,
चुन गद्दी पर आते है। 
यहाँ जहां पर हर घर में ,
माता कि पूजा होती है,
वही आज भी गली गली,
शिशु कन्या कि हत्या होती है। 
जहा वधू को मिलता है,
गृह लक्ष्मी का स्थान,
फिर क्यों दहेज़ के लिए आज भी,
छीने जाते है उनके प्राण?
महंगाई और बेरोजगारी से जब,
आत्महत्याए होती है,
वही अपनी ही चुनी हुई,
सरकार मजे से सोती है। 
पर बस अब इन कष्टो को हम,
और नहीं सेह पाएंगे,
प्रण  है के अत्याचार के विरुद्ध,
मिलकर आवाज़ उठाएंगे,
बापू के सपनो का भारत,
हम सच कर एक दिखलायेंगे,
"सत्यमेव जयते का नारा आज फिर से लगाएंगे,
और सच्चाई कि गूँज यह हर दिल तक पहुचाएंगे। 
-निमीशा 

Wednesday 1 January 2014

iltjaa

इल्तज़ा 

आँखों में आंसू बन रहना चुन लिया है तुमने जब,
है इल्तजा कि अब मेरे ख्वाबो में आना छोड़ दो,
जब जिंदगी से दूर जाने का किया है फैसला,
आँखों में रेह्कर मेरी पलकों को भिगाना छोड़ दो,
जब साथ चलना भी नहीं तुमको गवारा तो सुनो,
परछाई सा मिलने बिछड़ने का छलावा छोड़ दो,
कर चले हो जब अकेला तिमिर में इस रूह को,
उम्मीद के जुगनू सा अब तुम टिमटिमाना छोड़ दो,
हमसे सारे हक़ और औहदे  छीन  जब तुम ले गए,
दरख्वास्त है के हमपे भी अब हक़ जताना छोड़ दो,
गर तुम्हे है फ़िक्र मेरे दर्द कि तो बस इतना करो,
दर्पण में मेरे बैठ कर तुम मुस्कुराना छोड़ दो…। 

- निमीशा